अपनी गंध नहीं बेचूंगा चाहे सभी सुमन बिक जाएं चाहे ये उपवन बिक जाएं चाहे सौ फागुन बिक जाएं पर मैं गंध नहीं बेचूंगा- अपनी गंध नहीं बेचूंगा जिस डाली ने गोद खिलाया जिस कोंपल ने दी अरुणाई लक्षमन जैसी चौकी देकर जिन कांटों ने जान बचाई इनको पहिला हक आता है चाहे मुझको नोचें तोडें चाहे जिस मालिन से मेरी पांखुरियों के रिश्ते जोडें ओ मुझ पर मंडरानेवालों मेरा मोल लगानेवालों जो मेरा संस्कार बन गई वो सौगंध
Subscribe to Jakhira Poetry Collection
Get updates delivered right to your inbox!